नैनीताल से अजय उप्रेती की रिपोर्ट
उत्तराखंड की बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं तथा पलायन के दर्द को आईना दिखाती फिल्म केदार
युवाओं में कुछ कर गुजरने का जज्बा भी सिखाती है फिल्म केदार
HillsOne Studios और DesiEngine Production के बैनर तले 16 अप्रैल को रिलीज होने वाली उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर आधारित उत्तराखण्डी फिल्म KEDAR राज्य बनने के 20 वर्षों बाद तक भी उत्तराखंड की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को आईना दिखाने के लिए काफी है केदार फिल्म के माध्यम से यह बताया गया है कि राज्य बनने के बाद भी स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकताओं पर कोई ध्यान नहीं दिया गया जिसका खामियाजा आज भी उत्तराखंड के लोगों को भुगतना पड़ रहा है उम्मीद थी कि राज्य बनने के बाद प्रतिभाओं का पलायन रुकेगा और उन्हें अपने ही राज्य में रोजगार के पर्याप्त अवसर मिलेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ राज्य बनने से पहले जो पलायन की रफ्तार थी राज्य बनने के बाद वह थमी नहीं बल्कि इसमें और तेजी से इजाफा हुआ केदार फिल्म ने वास्तव में इन दो जटिल समस्याओं की ओर एक उत्तराखंडी युवक के किरदार के माध्यम से उत्तराखंड के नीति निर्धारकों को सोचने पर मजबूर किया है कि जो कल्पना पृथक राज्य की की गई थी हुए सपने चकनाचूर हुए हैं लेकिन इस फिल्म का सुखद पहलू यह है कि फिल्म में दर्शाया गया है कि यदि जीवन में कुछ करने की इच्छा हो और इरादा मजबूत हो तो बड़ा सा बड़ा लक्ष्य भी हासिल किया जा सकता है फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक आम उत्तराखंडी जिससे बहुत बड़े सपने देखे थे जिसकी तमन्ना अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर बनने की थी लेकिन नियति ने ऐसा खेल खेला कि उत्तराखंड की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं के चलते उसके पिता का निधन हो गया पिता के साए से वंचित युवक नौकरी की तलाश में दिल्ली पहुंचता है जहां मामूली सी सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिलती है लेकिन उस युवक का हौसला बहुत बड़ा था वह चाहता है कि जिस समस्या से उसने सामना किया वह समस्या किसी और उत्तराखंडी के आगे ना आए पलायन की अंधी दौड़ की बजाय अपने ही क्षेत्र में रहकर कुछ ऐसा किया जाए जो दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बने तमाम झंझावतों से जूझते हुए युवक अपना मुकाम हासिल करता है और युवा शक्ति के अंदर को जोश और जुनून पैदा करता है कि यदि उनके हौसले मजबूत है तो बड़ी से बड़ी चट्टानों का सामना कर अपना मार्ग बना सकते हैं और उस मार्ग में अपना ही नहीं बल्कि अपने हर उस व्यक्ति की समस्या का समाधान कर सकते हैं जो कहीं न कहीं झंझावतों से जूझ रहा है फिल्म निर्माता सुरेश पांडे के मुताबिक
केदार एक आम उत्तराखंडी युवक की कहानी है जो उत्तराखंड में ही रहकर, कुछ बड़ा करने का सपने सजोकर गरीबी से जूझकर पहाड़ पर पढ़ाई करता है मग़र उत्तराखंड के बदहाल मेडिकल व्यवस्था से केदार के पिता की जान चली जाती है गाँव में रोजगार न होने के कारण भारी मन से गाँव छोड़कर दिल्ली पलायन होना पढ़ता है जहाँ उत्तराखंड के ईमानदार पढ़े लिखे केदार को छोटी सुरक्षा गार्ड की नोकरी मिलती है मगर सपने बड़े थे बचपन से ही अंतर्राष्टरीय बॉक्सर बनना चाहता था अब उसके साथ ही अपने पिता के नाम से उत्तराखंड में बहुत बड़ा अस्पताल खोलना चाहता है उसी चुनौती को लक्ष्य तक पहुचाने के लिए केदार मेहनत करता है फ़िल्म में शानदार गीत है ,रोमांश है, एक्शन है।
-यह फ़िल्म उत्तराखंड के युवाओं में नई ऊर्जा भर देगी नई प्रेरणा देगी।
इस फिल्म का मुख्य उद्देश्य है उस युवा वर्ग को दिशा दिखाना है जो अपने सपनों को छोड़ कर नौकरी की तलाश में पहाड़ से पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं और अंततः दिशा भ्रमित हो जाते हैं।
फ़िल्म उत्तराखंड की बदहाल मेडिकल व्यवस्थाओ व पलायन पर कुठाराघात करती नजर आएगी।
‘ केदार ‘ द प्राइड ऑफ देवभूमि फ़िल्म के निर्माता: जाने माने उधोगपति सुरेश पांडे NRI जतिंदर भट्टी,
सह निर्माता :सुरेश अवनीश जैन, अनुराग कौशल,विकास देस्वर, विरेंदर राव,कैलाश चांद जोशी,संजय जोशी, एन एस लडवाल,गणेश सिंह रौतेला,
निदेशक :कमल मेहता,
सह निदेशक मनीष बल्लाल
,प्रोडक्शन मैनेजर :हरीश रावत
अडमिस्टेटर:प्रवीण देउपा,
उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध गीतकार स्वर्गीय हीरा सिंह राणा, प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ हरिसुमन बिष्ट,उषा उपाध्याय,
संगीतकार: विरेंदर नेगी,प्रसिद्ध लोक गायक सत्येंद्र पारिंडिया,दीपा पंत,सत्य अधिकारी आदि है इधर पीआरओ दिव्या राय ने बताया कि फिल्म 16 अप्रैल को रिलीज होगी.